SSLC Model Hin Exam Feb.
2017 – Ans.
1.
साहिल
के सामने बेला लज्जित होना
नहीं चाहती। 1
2.
साहिल
की नज़र में बेला बहुत अच्छी
लड़की थी। इसलिए साहिल 2
के
सामने माटसाब से दंड पाना बेला
की दृष्टि में शरम की बात होती
थी।
(दंड
– सजा,
punishment)
3.
बेला
की डायरी 4
तारीखः.................
आज
सुरेंदर जी के पीरियड मैं बहुत
डर गई। माटसाब कॉपी की जाँच
कर
रहे थे। वे आज बिना कारण से
मुझसे क्रुद्ध हुए। उन्होंने
मेरी बालों में
पंजा
फँसाया। हे भगवान!
मैं
बहुत डर गई। मैं डर के मारे
काँप रही थी।
मुझे
छोड़ने पर भी मेरी टाँगें काँप
रही थीं। मैं बहुत लज्जित थी
क्योंकि
साहिल
के सामने सजा पाना मेरे लिए
ज़रा भी पसंद नहीं। साहिल के
पास
बैठने
पर मैं उससे नज़र नहीं मिला
पाई क्योंकि मैं जानती हूँ
कि वह मुझे
बहुत
अच्छी लड़की मानता है। आज का
दिन एक अच्छा दिन नहीं था।
4.
नदी
चुपचाप बह रही है। 1
5.
चुपचाप
बह रही है वह पतली-सी
नदी
जिसका
कोई नाम नहीं
6.
नदियाँ
जीवनदायिनी है -
पोस्टर 4
नदियाँ -
प्राणदायिनी
है
जीवन
दायिनी है
नदियों
की रक्षा करें
प्रकृति
की रक्षा करें
नदियाँ
पशु-पक्षी,
मानव,
पेड़-पौधे
सभी
का प्यास बुझाती है
नदी
हमारी संस्कृति का प्रतीक है
नदी
संरक्षण समिति,
कण्णूर
7.
उसकी
-
वह
+
की 1
8.
गाँव के कुओं में से एक निम्न
जाति के लोगों के लिए है। 2
उसका पानी
गंदा हो गया है। लेकिन ठाकुर
के या साहू के कुएँ से
निम्न
जाति के लोगों को पानी लेने
की अनुमति नहीं। गंगी का
विद्रोही
मन उसके विरुद्ध आवाज़ उठा
रहा है।
9.
पटकथा 4
दृश्यः
पात्रः
जोखू -
लुंगी
और बनियान पहनी है,
45 साल
गंगी
-
साड़ी
पहनी है,
करीब
38 साल
की औरत
स्थानः
गंगी का घर। कच्चा घर। एक
टूटी-फूटी
चारपाई पर
जोखू
बैठ रहा है।
समयः
शामको 5
बजे।
संवादः
जोखूः
गंगी..
गंगी..
गंगीः
क्या हुआ?
जोखूः
यह क्या है?
कहाँ
से लाई हो यह गंदा पानी?
गंगीः
कुएँ से,
जहाँ
से रोज़ लाती हूँ।
जोखूः
बदबू आ रहा है। पिया नहीं जाता।
गंगीः
पता नहीं। देख लूँ। (गंगी
पानी की जाँच करती है)
हाँ
सही है,
नहीं
यह मत पीजिए। मैं अच्छा पानी
लाती हूँ।
जोखूः
फिर कहाँ से पानी मिलेगा,
ठाकुर
के कुएँ से या साहू के?
गंगीः
क्या एक लोटा पानी भरने नहीं
देंगे?
जोखूः
सावधान!
हाथ-पाँव
तुड़वा आएगी। (सावधानः
സൂക്ഷിക്കുക)
10.
सत्यजीत
राय – स्टोकर बाबूः वार्तालाप 4
सत्यजीत
रायः अजी!
स्टोकर
बाबू।
स्टोकर
बाबूः क्या हुआ जी?
सत्यजीत
रायः धुआँ कहाँ है शूटिंग के
समय बड़ी मात्रा में धुआँ
उड़ना
था न?
स्टोकर
बाबूः माफ कीजिए जी। मेरा
ध्यान तो शूटिंग पर पड़ा,
कोयला
डालना भूल गया।
सत्यजीत
रायः क्या करें?
फिर
से शोट लेना पड़ेगा। बड़ा
नुकसान
हो गया।
स्टोकर
बाबूः इस बार गलती नहीं होगी,
मैं
सावधान रहूँगा।
सत्यजीत
रायः और एक बार गाड़ी को पीछे
ले जाना पड़ेगा।
स्टोकर
बाबूः इस बार कुछ भी गड़बड़ी
नहीं होगी।
सत्यजीत
रायः मैं एक आदमी को आपके साथ
बिठाता हूँ,
इस
बार न भूलें।
स्टोकर
बाबूः उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी
जी।
सत्यजीत
रायः ठीक है,
लेकिन
एक आदमी आपकी सहायता करेगा।
11.
धुआँ
कहाँ से निकलती? 1
12.
झूठ
– असत्य 1
13.
महारथी
का विशेषण -
बड़े-बड़े 1
14.
टूटा
पहिया -
आस्वादन
टिप्पणी 4
टूटा
पहिया हिंदी के प्रसिद्ध कवि
धर्मवीर भारती की एक
प्रसिद्ध
कविता है। इस कविता के द्वारा
कवि लघु मानव की प्रधानता
पर
बल देते हैं।
कवि
महाभारत के एक पौराणिक प्रसंग
का सहारा लेते हैं।
चक्रव्यूह
को भेदकर उसमें प्रवेश किया
अभिमन्यु उसमें फँस
जाता
है। कौरव पक्ष के सभी महायोद्धा
एकसाथ मिलकर
अभिमन्यु
पर आक्रमण करते हैं। उसके
घोड़े,
रथ,
हथियार-
सब
नष्ट कर देते हैं। तब उसे रथ
का एक टूटा पहिया ही एकमात्र
सहारा
बन जाता है। इस टूटे पहिए की
सहायता से वह उन महारथियों
से
थोड़ी देर के लिए अपनी रक्षा
करता है और अंत में मारा जाता
है।
यहाँ
एक सारहीन या तुच्छ टूटा पहिया
ही वीर योद्धा
अभिमन्यु
के लिए सहायक बनता है। इसी
प्रकार समाज के तुच्छ
माने
जानेवाले मानव भी क्रांति
(विप्लव)
के
वाहक बन सकते हैं
और
सामाजिक परिवर्तन संभव करा
सकते हैं। अतः हमें यह मानना
चाहिए
कि समाज के तुच्छ माने जानेवाली
बातें भी कभी-न-कभी
बड़ी
सहायक हो सकती हैं।
वर्तमान
समाज में भी तुच्छ माने जानेवाले
मानव का
महत्वपूर्ण
स्थान है। सच्चे प्रजातंत्र
में कोई भी व्यक्ति तुच्छ
नहीं
होता। शासन का निर्णय भी उसके
हाथों से हो सकता
है।
याने यह कविता बिलकुल अच्छी
और प्रासंगिक है।
(फँसना
-
കുടുങ്ങുക)
15.
सहि
मिलान 3
बारिशों
से पहले की वबारिश का दिन –
बीबहूटी
पहले
मैं ये पैसे बटोरूँगा -
सबसे
बड़ा शो मैन
गरीबों
का दर्द कौन समझता है -
ठाकुर
का कुआँ
16.
हमने
शूटिंग का सारा इंतज़ाम
किया था। 1
17.
यह
घटना दिल्ली में हुई थी। 1
18.
मामाजी
के नाम बालिका का पत्र 4
दिल्ली,
तारीखः............।
पूज्य
मामाजी,
आप
कैसे हैं?
मामी
जी और सन्तोष कैसे हैं?
मैं
यहाँ
ठीक हूँ। घर में सब अच्छे हैं।
मैं
इस पत्र के द्वारा एक घटना का
वर्णन करना चाहती
हूँ।
मुझे आज गाँधीजी से मिलने का
सौभाग्य मिला। यह
संध्या
प्रार्थना के बाद हुआ था।
मैंने उनको पाँच रुपए दिए
और
उनसे हस्ताक्षर माँगा। उन्होंने
हस्ताक्षर किया। कुछ
और
लिखने की प्रार्थना करने पर
उन्होंने पूछा कि पिताजी
क्या
करते हैं। मैंने उत्तर दिया
कि पिताजी तंबाकू की दुकान
चलाते
हैं। उन्होंने तुरंत लिख दिया
कि तंबाकू पीना बुरा है।
मैंने
यह बात माँ-बाप
से भी कही थी।
अगली
छुट्टी के दिनों में मिलेंगे।
शेष बातें अगले पत्र में।
आपकी
भानजी,
आशा।
सेवा
में
श्री.
के.
गंगाधर,
देवनगर,
कण्णूर।
रवि,
सरकारी
हायर सेकंडरी स्कूल,
कडन्नप्पल्लि,
कण्णूर।