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Saturday, 10 September 2016

IX Hin Qn Aug 2016 Ans


IX Hin Qn Aug 2016 Ans
   1-3 कवितांश के आधार पर उत्तर
1. कवितांश में खुद शब्द स्वयं का अर्थ देता है।                                     1
2. निम्नलिखित आशयवाली पंक्ति चुनकर लिखें।                                   1
        जिंदगी की कठिनाइयों को सहकर आगे चलना।
                उत्तरः काँटों भरी इस मुश्किल राह पर चलना।
3. कविता का परिचय देते हुए टिप्पणी                                         4
     'माँ ' नामक यह कविता माँ के महत्व पर बल देनेवाली है। हर व्यक्ति को अपनी माँ सबसे प्यारी होती है।
रचनाकार कहते हैं कि हे माँ अगर तुम न होती तो कठिनाइयों से भरी मुश्किल राह पर चलना मुझे कौन सिखाता? मुझे सुलाने के लिए तुम प्यारी-प्यारी लोरियाँ सुनाती थीं। अगर तुम न होती तो मुझे कौन लोरीयाँ सुनाता? हे माँ! तुम सारी रात जागकर मुझे चैन की नींद देती थी। यदि तुम न होती तो मुझे इस प्रकार सुलानेवाला कौन होता है? मुझे चलना भी तुमने ही सिखाया था।
     हर व्यक्ति को अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए सबसे बड़ी सहायता अपनी माँ से ही मिलती है। एक बच्चे को अपनी माँ के बिना जीना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन आज के ज़माने में बूढ़े माँ-बाप की ओर ध्यान न देनेवाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है। यह एक सामाजिक विपत्ति बन गई है। माँ के महत्व पर बल देलेवाली यह कविता अच्छी और प्रासंगिक है।
4. नौजवान पक्षी को दीमकों का शौक थाथा का सीधा संबंध शौक से है     1
5. कहानी में वर्तमान सामाजिक स्थिति पर व्यंग्यअपना मत               3
      इस कहानी में जो नौजवान पक्षी है वह हवा में तैरनेवाले कीड़ों को छोड़कर गाड़ीवाले से दीमकें खरीद कर खाता है। उसके लिए उसे अपने ही पंख को निकालकर देना पड़ता है। यह पीड़ा सहकर भी अपना स्वाभाविक भोजन छोड़कर नकली खाने की ओर आकृष्ट हो रहा है।
     हमारी अपनी एक खाद्य संस्कृति थी। हम अपने ही गाँवों में या क्षेत्रों में पैदा किए जानेवाले अच्छे फल-मूल, अनाज-सब्जी आदि खाया करते थे। लेकिन आज के लोग, विशेषतः नवुवक और बच्चे विज्ञापनों के मोहजाल में पड़कर बाज़ार से नकली खाना खाने में तत्पर होते हैं। इस प्रकार के भोजन में रंग, स्वाद आदि नकली होते हैं, ये हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हैं। लेकिन उनका कृत्रिम स्वाद हमें उनकी ओर आकर्षित करता है। याने हमारे अपने अच्छे खाद्य पदार्थों को छोड़कर और किसी विदेशी कंपनियों की उपजें स्वीकार कर हम अपने स्वास्थ्य को नष्ट कर रहे हैं। (नकली - कृत्रिम, खाद्य संस्कृति - ഭക്ഷണ സംസ്കാരം, क्षेत्र – മേഖല, अनाज-सब्जी - ധാന്യങ്ങളും പച്ചക്കറികളും, विज्ञापन – പരസ്യം, स्वास्थ्य- ആരോഗ്യം, हानिकारक – ദോഷകരം)
     6-8 कवितांश के आधार पर उत्तर
6. संभावित आशय चुनें और तालिका की पूर्ति करें।                               2
कंधों से उतर गई मर गई
कंधे उतर गए बेसहारे हो गए

7. वर्तमान समय में पंक्तियों का महत्व                                           2
      वर्तमान समाज में वृद्धजनों की समस्या एक भयंकर समस्या बन रही है। वृद्धजनों को पालनेवाले बहुत से केन्द्र खुले जा रहे हैं। क्योंकि बेटे-बेटियों को अपने बूढ़े-माँ-बाप को देखने का समय नहीं हो रहा है, मन नहीं हो रहा है। पहले समाज में संयुक्त परिवारों की प्रथा थी। लेकिन आज अणु परिवारों की प्रथा है। यह परिवर्तन वृद्धजनों की देखभाल और छोटे बच्चों की देखभाल में बड़ा बाधा उत्पन्न कर रहा है। 'पुल बन थी माँ ' नामक कविता पाठकों का मन इस समस्या की ओर आकर्षित करनेवाली एक कविता है।
 (प्रथा: സമ്പ്രദായം अणु परिवार: അണുകുടുംബം देखभाल: സംരക്ഷണം बाधा: തടസ്സം)
8. पुल बनी थींं माँ - कविता पर टिप्पणी                                       4
      पुल बनी थी माँ हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्री नरेन्द्र पुंडरीक की एक अच्छी कविता है। यह कविता बूढ़े माँ-बाप के प्रति लोगों के मन में विचार उठानेवाली है।
      कवि कहते हैं कि माँ, हम भाइयों के बीच एक पुल बनी थी। पुल दो किनारों को जोड़ता है, संबंध सुदृढ़ बनाता है। माँ रूपी पुल के ऊपर हमारी गाड़ी बिना किसी बाधा से चलती रहती थी। हमारे सारे कार्यकलाप सुचारू रूप से चलते रहे। पिताजी की मृत्यु होने पर माँ हमारे बीच एक पुल बनी रही। हम भाइयों के बीच में संबंध बनाए रखने में माँ ही केन्द्र बिन्दु थी। लेकिन धीरे-धीरे माँ का उम्र बढ़ने लगा, स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, वह टूटती रही। हम अनुभव करने लगे कि माँ बुढ़ा रही है। हमें विभिन्न कार्य करने के लिए अच्छे-अच्छे निर्देश माँ देती रही लेकिन उनकी हर आवाज़ में बूढ़ी होने की आदत भी दिखाई पड़ने लगी। वह धीरे-धीरे टूटती रही। हाथों हाथ रहती माँ एक दिन हमारे कंधों में आ गई। माँ हमारी सबकुछ थी, भाइयों के बीच पुल बनी थी, सबको एकता से रखती थी, लेकिन बूढ़ी हो गई माँ हमारे वृषभ कंधों को भी भारी लगने लगी। याने अपनी माँ को अपने पास रखने में हम विमुख होने लगे। जब तक वह जीवित रही तब तक हम अपने कंधे बदलते रहे। हम भूल रहे थे कि माँ आखिर माँ ही तो है। हमें बार-बार कंधे बदलते देखकर माँ अंत में वह हमारे कंधें से उतर गई, याने उसकी मृत्यु हुई। उसकी मृत्यु होते ही हम बेसहारे हो गए।
      वर्तमान समाज में वृद्धजनों की समस्या एक बड़ी समस्या बन गई है। सबकहीं वृद्धजनों के लिए भवनों की संख्या बढ़ते समय यह कविता बिलकुल अच्छी और प्रासंगिक है।
    (कार्यकलाप: പ്രവര്‍ത്തനങ്ങള്‍ सुचारू रूप से: നല്ല രീതിയില്‍ स्वास्थ्य: ആരോഗ്യം)
    9-10गद्यांश के आधार पर उत्तर
9. कहानी के प्रसंग को पटकथा में बदलने के लिए तालिका भरें                  4
स्थान और समय एक ग्रामीण सड़क। सुबह दस बजे।
पात्र एक नौजवान पक्षी जिसके शरीर में पंखों की संख्या बहुत कम है। एक बैलगाड़ी वाला, उसके सिर पर पगड़ी है, लुंगी और गले में एक अंगोछा पहना है।
दृश्य का विवरण ग्रामीण सड़क के एक किनारे नौजवान पक्षी एक पेड़ की डाली पर बैठी है। उसके पास दीमकों की एक टोकरी रखी गई है। थोड़ी दूर से एक गाड़ीवाला अपनी गाड़ी चलाते हुए आ रहा है। गाड़ी में दीमकों से भरे बोरे हैं।
     (अंगोछा : തോര്‍ത്ത്)
10. पटकथा के पात्रों के बीच का संवादः नौजवान पक्षी और गाड़ीवाला        4
नौजवान पक्षी: गाड़ीवाले ओ गाड़ीवाले। मैं कितने दिनों से तुम्हारी राह देख रहा हूँ!
गाड़ीवाला: (गाड़ी रोकती है) बताओ क्या बात है?
नौ..: मैं कुछ दिनों से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।
गा.: क्यों?
नौ..: मैंने कई बार तुमसे अपने पंख देकर दीमकें ली थीं।
गा.: हाँ, दीमकें ली थीं। क्या इस बार दीमकें नहीं चाहिए?
नौ..: नहीं। इस बार मैं दीमकें देना चाहता हूँ।
गा.: क्यों?
नौ..: क्योंकि मैं अपने पंख वापस लेना चाहता हूँ।
गा.: कैसे?
नौ..: मैं कुछ दिनों से दीमकें इकट्ठा कर रहा हूँ। इस प्रकार मेरे पास कई दीमकें पड़ी हैं। 
       मैं उन दीमकों को देकर अपने पंख वापस माँग रहा हूँ।
गा.: मूर्ख! मैं पंख लेकर दीमकें देता हूँ, दीमकें लेकर पंख नहीं।
नौ..: हे भगवान! यह बड़ा धोखा हो गया।
गा.: धोखा नहीं यार। यह तो सौदा है।
    (राह देखना, इंतज़ार करना : പ്രതീക്ഷയോടെയിരിക്കുക वापस लेना : തിരിച്ചെടുക്കുക 
    माँगना : ആവശ്യപ്പെടുക  मूर्ख : വിഡ്ഢി धोखा : ചതി यार : ചങ്ങാതി सौदा : വ്യാപാരം)
     11-14 (किन्हीं तीन के उत्तर लिखें)
11. गोपू की डायरी। टीवी देखने चलने का अनुभव                           4
तारीखः....................
      आज में चुन्नी और लल्लू के साथ टीवी देखने के लिए दूसरे गाँव गया। पहले हमने प्रतिज्ञा ली थी कि हम किसी को नहीं बताएँगे। पहाड़ी रास्ते पर, पगडंडियों से होकर हम आगे बढ़े। फिर सड़क पार करते समय कुछ गड़बड़ी भी हुई। ड्राइवर से डाँट भी मिली। चलते-चलते सब्जी मंडी में लल्लू अप्रत्यक्ष हो गया। कुछ देर के बाद उससे मिलने पर मन को बड़ी शांति मिली। उस गाँव में पहुँचने पर मनोहर चाचा का घर पहचानना मुश्किल हो गया। क्योंकि सभी घरों के ऊपर एंटीना लगे थे। हम तीनों दुख और निराशा से रोने लगे। भीड़ जम गई। उन लोगों में मनोहर चाचा भी थे। उन्होंने मुझे पहचान लिया। मुझे उठाकर वे अपने घर चले। इस प्रकार उनके घर पहुँचे। हम तीनों के घर में खबर दी गई। लेकिन टीवी चालू करते ही बिजली चली गई। हम तीनों बहुत निराश हुए। फिर पिताजी के साथ घर पहुँचते समय बड़ी देरी हो गई। आज का दिन मैं अपनी जिंदगी में कभी नहीं भूल सकता।
   (गड़बड़ी: കുഴപ്പം डाँट : ശകാരം खबर देना : വിവരം കൊടുക്കുക देरी होना : താമസം നേരിടുക)
12. पंख वापस लेने के संबंध में पक्षी और गाड़ीवाले के 
    बीच का वार्तालाप                                                             4
      प्रश्न 10 का उत्तर देखें।
13. विश्व वृद्ध दिवस – पोस्टर                                                   4
                                    अक्तूबर 1
                    विश्व वृद्ध दिवस
                           वृद्ध जनों कोः
                                प्यार की, मान्यता की,
                                मदद की और संरक्षण की ज़रूरत है
                   वे हमारे माँ-बाप या अन्य रिश्तेदार ही हैं
                           उन्हें हमारे साथ ही रखें।
                 बूढ़ें वृद्ध जनों को 'वृद्ध सदनों' में न छोड़ें।
      (मान्यता - അംഗീകാരം मदद - സഹായം रिश्तेदार - ബന്ധുക്കള്‍)
14. संशोधन करके लिखें।                                                           3
एक गाँ में एक बूढ़ी औरत रहती हैउसके दो बच्चे हैं।
15. संबंध पहचानें और सही मिलान करें।                                         3
ग़ालिब मैं उर्दू कविता लिखता हूँ
पक्षी मैं खुद दीमकें ढूँढूँगा।
चुन्नी मैं कसम खाती हूँ।
                                   Ravi. M., GHSS, Kadannappally, Kannur. 9446427497


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