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Sunday 24 July 2016

दस्तंबू


     मिर्जा असद-उल्लाह खां ग़ालिब का नाम भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के महँ कवियों में शामिल है ! मिर्जा ग़ालिब ने 1857 के आन्दोलन के सम्बन्ध में अपनी जो रूदाद (विवरण) लिखी है उससे उनकी राजनीतिक विचारधारा और भारत में अंग्रेजी राज के सम्बन्ध में उनके दृष्टिकोण को समझने में काफी मदद मिल सकती है !

अपनी यह रूदाद उन्होंने लगभग डायरी की शक्ल में प्रस्तुत की है ! और फारसी भाषा में लिखी गई इस छोटी-सी पुस्तिका का नाम है-दस्तंबू ! फारसी भाषा में 'दस्तंबू' शब्द का अर्थ है पुष्पगुच्छ, अर्थात बुके (Bouquet) ! अपनी इस छोटी-सी किताब 'दस्तंबू' में ग़ालिब ने 11 मई, 1857 से 31 जुलाई, 1857 तक की हलचलों का कवित्वमय वर्णन किया है ! 'दस्तंबू' में ऐसे अनेक चित्र हैं जो अनायास ही पाठक के मर्म को छू लेते हैं ! किताब के बीच-बीच में उन्होंने जो कविताई की है, उसके अतिरिक्त गद्य में भी कविता का पूरा स्वाद महसूस होता है ! जगह-जगह बेबसी और अंतर्द्वंद की अनोखी अभिव्यक्तियाँ भरी हुई हैं! इस तरह 'दस्तंबू' में न केवल 1857 की हलचलों का वर्णन है, बल्कि ग़ालिब के निजी जीवन की वेदना भी भरी हुई है ! 'दस्तंबू' के प्रकाशन को लेकर ग़ालिब ने अनेक लम्बे-लम्बे पत्र मुंशी हरगोपाल 'ताफ्तः' को लिखे हैं ! अध्येताओं की सुविधा के लिए सारे पत्र पुस्तक के अंत में दिए गए हैं ! भारत की पहली जनक्रांति, उससे उत्पन्न परिस्थितियां और ग़ालिब की मनोवेदना को समझने के लिए 'दस्तंबू' एक जरूरी किताब है ! इसे पढने का मतलब है सन 1857 को अपनी आँखों से देखना और अपने लोकप्रिय शाइर की संवेदनाओं से साक्षात्कार करना !
मुहम्मद अशरफ़ आलुंगल और हिंदी ब्लॉग से साभार

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