പത്താം ക്ലാസ്സിലെ नदी और साबुन കവിതയുടെ दैनिक योजना തയ്യാറാക്കാന് സഹായകമായ വിധത്തിലാണ് ഈ പോസ്റ്റ് ഒരുക്കിയിരിക്കുന്നത്. ജില്ലാ പഞ്ചായത്തിന്റെ ആഭിമുഖ്യത്തില് തയ്യാറാക്കിയ മുകുളം എന്ന മെറ്റീരിയലില് ലഘുവായ ചില മാറ്റങ്ങള് വരുത്തിയാണ് ഇത് രൂപപ്പെടുത്തിയിട്ടുള്ളത്. दैनिक योजना തയ്യാറാക്കുമ്പോള് നിരന്തര മൂല്യനിര്ണ്ണയത്തിന്റെ ടൂളുകളും ഉള്പ്പെടുത്തുവാന് ശ്രദ്ധിക്കുമല്ലോ? പോസ്റ്റില് സൂചിപ്പിച്ചിട്ടുള്ള വീഡിയോകളും ചിത്രങ്ങളും മറ്റ് സഹായ സാമഗ്രികളും നിശ്ചിത ടാബുകളില് (വീഡിയോ, റിസോഴ്സസ് ...) സജ്ജമാക്കാന് പരമാവധി ശ്രമിച്ചിട്ടുണ്ട്. ഏവരുടെയും അഭിപ്രായങ്ങളും നിര്ദ്ദേശങ്ങളും പ്രതീക്ഷിക്കുന്നു. ബ്ലോഗിനെ മെച്ചപ്പെടുത്തുവാനും സജീവമാക്കുവാനും നിരന്തര ഇടപെടലുകള് നടത്തുവാന് അഭ്യര്ത്ഥിക്കുന്നു - Hindi Blog |
नदी और साबुन
समस्या क्षेत्रः जल-थल संसाधनों के प्रबन्धन में वैज्ञानिकता का अभाव।
समस्याः प्रकृति पर मानव के अनियंत्रित हस्तक्षेप से प्राकृतिक संपदा का शोषण बढ़ रहा है।यह प्राकृतिक संपदा हमारा वरदान है। इसका शोषण नहीं पोषण करना चाहिए। लेकिन बद्किस्मत से हम शोषण ही कर रहे हैं। जल-थल संसाधनों के अवैज्ञानिक प्रबन्धन से हमारा ही अस्तित्व नष्ट हो रहा है। इस पर कवियों ने अपनी प्रतिक्रिया जोड़ी है। झारखण्ड के कवि " ज्ञानेन्द्रपति" इसका अपवाद नहीं। उनकी कविता "नदी और साबुन" एक संदेश दे रही है। पराजित नदी का...क्रंदन...
पहला अंतर
नयी कक्षा,नया वातावरण...
पिछले साल की कक्षाई प्रक्रियाओं के संबंध में प्रश्न पूछें -
? नवीं कक्षा की अंतिम इकाई किससे संबंधित है?
? अंतिम पाठभाग का नाम क्या है? किसका है?
छात्रों को उत्तर देने का अवसर दें।
" पाल के किनारे रखा इतिहास "
"पाल के किनारे रखा इतिहास" में ऐसा एक प्रश्न है- "आपके इलाके में पुराने सभी जलस्रोत आज भी कायम हैं?
बुज़ुर्ग लोगों से पूछताछ करें और नष्ट होते जलस्रोतों पर एक संपादकीय तैयार करें।"
? क्या आपने संपादकीय तैयार की है?
छात्रों की प्रतिक्रिया ।
संपादकीय
आगामी लड़ाई पानी के लिए !
भारत में दो-चार महीने लगातार पानी बरसता है। हमारी नदियाँ और तालाबों वर्षा में पानी बहता है। पर वर्षा के बाद हमें पानी का कमी महसूस होता है। सच यह है कि हम भारतीयों को जल प्रबंधन कुछ मालूँ नही। हमें ज़्यादा पानी मिलता पर हम पानी बरबाद करने में माहिर हैं। जलस्रोतों में हम कचरा डालता है। नदी के किनारे से हम मिट्टी निकालता है। हमारी लगातार बरसता पानी को हम समुंदर में जाने के लिए रासता देता है। हम हमारी जल को प्रदूषित करता है। इसीलिए ही हमें पानी का कमी महसूस होता है। आज पानी एक बिकाऊ चीज़ बन गया है। जो चीज़ हमें मुफ्त में मिलते थे वे आज खरीदना पड़ता है।
पुराने जमाने में राजा लोग पानी प्रबन्धन के लिए अनेक तालाबों बनातो थे। पर आज हम और हमारा सरकार भी जल का प्राधान्य नहीं समजता। इसीलिए ही आज भी हमें पानी के बिना जीना पढता है।अगर हमें इस समस्या को सुझाना है तो हर एक आदमी को मेहनत करना पडेगा। हमें ज्यादा पेड़को लगाना पडेगा और होनेवाला पेडों को सुरक्षा देना भी होगा। कई और तालाबों का परीरक्षा करना भी होगा। पेड़ काटने से हमें रोकना होगा। ज्यादा पानी वर्षा काल में मिलता है पर इस पानी बरबाद हो जाता है। हमें पानी बरबाद होने से रोकना भी होगा और वर्षा को संकलन करना भी होगा। अगर हम यह काम करे तो पानी का समस्या एक हद तक सुझ सकता है। पानी हर एक मानव का अवकाश होता है। पानी को बरबाद करने का हक किसी को भी नहीं है। हमें यह अमूल्य वस्तु को नई पीढी को भी देना होगा। नही तो एक बात सुनिश्चित है की आगामी लड़ाई पानी के लिए होगा।
संशोधन करें
आपसी निर्धारण का अवसर दें।
बच्चों का स्तर पहचानें।
? कितने बच्चे A, B,C में आ गए ?
? A ग्रेडवालों को प्रोत्साहन दें ?
संपादकीय से संबंधित यह प्रश्न पूछें-
? संपादकीय का विषय क्या है?
संक्षिप्तीकरण:
" जल-थल प्रबंधन का वैज्ञानिक अभाव आजकल अधिक महसूस हो रहा है।"
वीडियो दृश्य दिखाएँ।( जल प्रदूषण संबंधी वीडियो १)
आशय समझाने के लिए ये भी दिखायें-
"गंगाजल या गंदाजल" - ( विडियो).
( जल प्रदूषण संबंधी विडियो २)
ये प्रश्न करें।
? यह वीडियो किस विषय का है?
? जल प्रदूषण क्यों हो रहा है?
? इसमें मानव का यानी हमारा क्या हिस्सा है?
? हम क्यों नदियों का दोहन कर रहे हैं?
छात्रों को प्रतिक्रिया का अवसर दें।
संक्षिप्तीकरण
" हम स्वार्थी हैं। हमारी स्वार्थता सहजीवियों तथा जलस्रोतों के विनाश का कारण बन जाती है।सुविधा के लिए हम जो करते हैं वे दूसरों के लिए असुविधाएँ पैदा करते हैं। हम भी नहीं जानते हैं कि इससे हमारा ही अस्तित्व संकट में पड़ जाता है। "
- क्या हम कविता का वाचन करें? ( कविता का आलाप सुनाएँ )
- वैयक्तिक रूप से अंकित वाचन।
- दल में विचार-विनिमय। ( कवि का चित्र या चलचित्र दिखाकर कवि परिचय )
- दलों में शंका समाधान।
- आवश्यक है तो आप प्रश्नों द्वारा शंका समाधान करें।
? नदी कहाँ से निकलती है?
? क्या आपने अपने प्रदेश की किसी नदी को दुबली होते देखा है? इसके क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
? नदी कैसे प्रदूषित होती है?
? नदी की इच्छाएँ क्या-क्या हो सकती हैं?
? "मरी हुई इच्छाओं की ......" इसमें कवि ने नदी की इच्छाएँ मरी हुई क्यों कहा है?
? "तुम्हारे दुर्दिनों के दुर्जल में" यहाँ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
? "किसने तुम्हारा नीर हरा
कलकल में कलुष भरा"- यहाँ कवि किसकी ओर संकेत करते हैं?
? पशु-पक्षी और मानव नदी से संपर्क रखते हैं। मगर किसके हस्तक्षेप से नदी को हानि पहुँचती है?
? जानवरों के व्यवहार से नदी कभी कलुषित नहीं होती। क्यों?
? किसके जुठारने से नदी कलुषित नहीं होती?
? कौन अपने दृढ़ पीठों से पानी उलीचता है?
? "...तुम सहती रही सानंद"- नदी क्या सानंद सहती है?
विचारों के आदान-प्रदान और शंका समाधान का अवसर दें।
शेष शंकाओं को पूरी कक्षा में सुनाएँ।
दूसरे दलों द्वारा शंकाओं का समाधान करवाएँ।
और भी कोई शंका बाकी है तो उचित सूचनाओं और प्रश्नों के ज़रिए सुलझाएँ।
छात्रो, मान लें कि नदी पेड़ को अपनी इच्छाएँ सुनाती है। दोनों के बीच का संभावित वार्तालाप लिखें।
? लेखन प्रक्रिया। वैयक्तिक रूप से लिखें।
- दल में प्रस्तुति, चर्चा।
- दल में परिमार्जन ।
- दलों द्वारा प्रस्तुति।
- अध्यापक की अपनी प्रस्तुति।
- किसी एक दल की उपज का संशोधन।
- हस्तान्तरण करके अन्य दलों की उपजों का संशोधन।
- स्वनिर्धारण का अवसर।
पेड : नदी, तुम क्यों दुखी हो?
नदी : जिसकी इच्छाएँ मरी हुई हैं, वह कैसे खुश हो जाता?
पेड : मतलब क्या है?
नदी : मैं निर्बाध बहती रहना और सबको शुद्ध जल देना चाहती हूँ।
पेड : कपडे धोने, स्नान करने और जानवरों को नहलाने लोग तेरे पास आते हैं न?
नदी : आते हैं, जानवरों की जलक्रीडा भी खुशी की बात है। यह जल मेरे लिए क्यों?
सब मानवों को देना चाहती हूँ। लेकिन वे मुझे गंदा कर देते हैं।
पेड : वे तुम्हें कूड़ा-कचरा मानते हैं -क्यों?
नदी : बहती हूँ न- हमेशा निर्मल रहना चाहती हूँ। लेकिन, कारखानों के गंदे और विषैले जल से बैंगनी बन गयी हूँ।
पेड : अब तो पता चला कि उनकी स्वार्थता से तेरी इच्छाएँ मर गयी हैं।
- अगला अंतर (आह...........................................तुम युद्ध।)
नदी की आत्मकथा प्रस्तुत करें।
मुझे बहने दो, निर्मल रहने दो
मेरा जन्म पहाड़ से हुआ है। मैं सदा बहती रहती हूँ। मानव, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि सब की सेवा करती हूँ। मैं नदी नाम से जानी जाती हूँ। लेकिन क्या करूँ? ऐसे निस्वार्थ होकर सबकी सेवा करते समय भी मैं संतृप्त नहीं हूँ। इनमें सबसे महान तो मानव ही माना जाता है। वही मानव मुझपर बड़ा अत्याचार कर रहा है। मेरे प्रवाह को रोकते हुए बाँध बनाता है। विभिन्न तरह के कूड़े-कचड़े, विषैला जल आदि से मुझे बहुत गंदा और प्रदूषित करता है। मेरी स्वच्छता और निर्मलता नष्ट होती जा रही हैं। मेरे जल में जीवों का रहना असंभव बन रहा है।
पता नहीं, यह हालत कब बदलेगी। मैं बिलकुल पहली जैसी, निर्मल तथा स्वच्छ जल से सबकी सेवा करना चाहती हूँ।
? आगे नदी की हालत क्या होगी?
? देखें, आगे नदी को क्या होती है।
वाचन प्रक्रिया।
? कारखाना नदी को कैसे गंदा करता है?
? कवि ने कारखाने को क्यों स्वार्थी कहा है?
? नदी की शुभ्र त्वचा कैसे बैंगनी हो गई?
? "तेज़ाबी पेशाब" के प्रयोग से कवि का तात्पर्य क्या है?
? "कारखाना" शब्द के प्रयोग से कवि किसकी ओर संकेत करते हैं?
? यहाँ हिमालय किसकी भूमिका निभाता है?
? नदी का युद्ध किससे है?
? नदी साबुन के सामने क्यों हार गई?
? "हिमालय के होते हुए भी नदी हार गई।" कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
? यहाँ साबुन किसका प्रतिनिधित्व करता है?
? इस कविता में कारखाना स्वार्थी मानव का प्रतीक है तो नदी किसका प्रतीक हो सकती है?
? "बैंगनी हो गई तुम्हारी शुभ्र त्वचा" में से कौन-सा चित्र उभरता है?
? नदी को इस दुर्दशा से कैसे बचाएँ?
? कविता में आपकी मनपसंद पंक्तियाँ कौन-कौन-सी हैं? क्यों?
? "नदी और साबुन" कविता के शीर्षक की सार्थकता पर अपनी राय प्रकट करें।
? इस कविता में कौन किसका शोषण करता है?
छात्रों को उत्तर बताने का अवसर दें।
- नदी मानव के अनियंत्रित हस्तक्षेप से दुबली, मैली-कुचैली हो जाती है। अपनी दुर्दशा पर नदी का, हिमालय के नाम पत्र तैयार करें।
ध्यान दें :
* बहती रहना * अपनी इच्छाएँ खो देना * प्रदूषित होना * दुबली, मैली-कुचैली हो जाना * साबुन से हार जाना *
- लेखन प्रक्रिया।
स्थान.................,
तारीख................
प्रिय हिमालय दादा,
नमस्कार ।
आपके यहाँ से निकलते ही मैं बहुत खुश थी। निर्बाध बहती रहना और सबको शुद्ध जल देना चाहती थी।लोगों से मिल-जुल कर, उनकी प्यास बुझाकर, हाथी-जानवारों की जल क्रीडा सानंद सहकर, बहने की इच्छा थी। बहना मेरा धर्म है,मैं बहती रहती हूँ। लेकिन दुबली, मैली-कुचैली होकर। लोग मुझे कलुषित कर रहे हैं। देश के विकास के लिए बनाए गए कारखानों का गंदा जल मेरी शुभ्र त्वचा को बैंगनी कर देता है। दिन ब दिन मानवों की स्वार्थता मुझे अधिक से अधिक प्रदूषित कर रही है। मानवों की स्वार्थता से मेरी लड़ाई हो रही थी। उसमें वह जीत गयी है। पराजित मुझ-जैसी गुलाम पर मानवों का स्वार्थपूर्ण हस्तक्षेप से नामोनिशान नष्ट हो रही है। आगामी पीढ़ी के लिए मैं क्या संचित कर रखूँ? बह बहकर मिट जाना मेरा अभिशाप होगा।
आशा है, कभी मिलेंगे ।
प्यार से
(हस्ताक्षर)
सेवा में
.....................,
....................।
- अगला अंतर
ये कक्षा में प्रस्तुत करें-
* नदी और पेड़ के बीच का वार्तालाप। * निराश नदी की आत्मकथा। * हिमालय के नाम नदी का पत्र।
छात्रों को वाचन करने का अवसर दें।
? क्या कविता का आस्वादन हुआ है?
? कविता पर आपकी राय क्या है?
? क्या यह कविता आज भी प्रासंगिक है? क्यों?
उत्तर लिखने का अवसर दें।
छात्र उत्तर प्रस्तुत करें।
इन बिंदुओं पर चर्चा करें।
- भूमिका- कवि और कविता का परिचय
- भाव विश्लेषण
- कविता की भाषा, बिंब, प्रतीक, प्रयुक्त शब्दावली आदि पर टिप्पणी
- कविता की प्रासंगिकता, संदेश आदि पर अपना दृष्टिकोणकविता की आस्वादन टिप्पणी तैयार करें।
लेखन प्रक्रिया - आस्वादन टिप्पणी।
उपज का आकलन करें। निर्देश: प्रकृति पर मानव का अनियंत्रित हस्तक्षेप से संबंधित चित्रों का संकलन करें। (वैयक्तिक)
वैयक्तिक लेखन पर टी.एम. में टिप्पणी ।
- अगला अंतर
भाषा की बात:
रेखांकित शब्दों का लिंग पहचानें।
उदा: 1. नदी दुबली है। लड़का दुबलाहै। लड़की दुबलीहै।
2. बच्चा बड़ा है। बच्ची बड़ी है।
3. नदी का जल दूषित हुआ। नदी का प्रवाह कम हुआ। नदी की धाराकम हुई।
- वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनके संबंध से रेखांकित शब्दों का लिंग पहचानें। छात्रों को वाक्यों के विश्लेषण से लिंग पहचानने में आवश्यक मदद दें।
- पाठ्यपुस्तक पृ.10 का अभ्यास (पुनर्लेखन) करने का निर्देश दें ।अतिरिक्त कार्य: जलप्रदूषण को रोकने के निर्देश देते हुए संकेत पट तैयार करें।
नदी और साबुन कविता का शेष अंश :
एक नीली साबुन-बट्टी
वह एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का
बहुप्रचलित साबुन है।
दुखियारी महतारी हे गंगा
उसका जी काँपता है डर से
उसकी प्रतिद्वन्द्वी हथेली-भर की वह
जो साबुन की टिकिया है
इजारेदार पूँजीवाद की बिटिया है
उसका बहाबली झाग उठने से पहले गंगा के दिल में हौल उठता है।
(महतारी: माँ, महाबली: अत्यंत बली, बट्टी: छोटी गोल लोटिया-टिकिया, इजारेदार: ठेकेदार, हौल: डर, भय)
इस संदेश का पी.डी.एफ. रूप Resources पन्ने में उपलब्ध है।
നല്ല ചുവടുവെപ്പുകള് എന്നും ശ്രദ്ധിക്കപ്പെടാറുണ്ട്.അംഗീകാരം ആഗ്രഹിക്കരുത്, അത് അര്ഹമായ സമയത്ത് വന്നു ചേരുക തന്നെ ചെയ്യും.എന്റെ വിദ്യാലയത്തിലെ അധ്യാപകനും ഹിന്ദി ബ്ലോഗിന്റെ ശില്പ്പികളിലൊരാളാണെന്നറിയുന്നതില് സന്തോഷിക്കുന്നു.ഹൃദയെ നിറഞ്ഞ അഭിനന്ദനങ്ങള്
ReplyDeleteതീര്ച്ചയായും ഈ കമന്റിനെ ഞങ്ങള് നെഞ്ചേറ്റുന്നു
Deleteहिंदी ब्ल़ॉग का हार्दिक स्वागत। पहली महीना पूरी होनेवाली है। सतत मूल्यांकन कार्य के लिए पूर्व विषय ही चुनना है क्या ? किसी इशारा हिंदी ब्लॉग द्वारा दे सकें तो अच्छा होगा।
ReplyDeleteजी
ReplyDeleteधन्यवाद
सतत आकलन का एक प्रशिक्षण कार्यक्रम अगले मगीने में चलानेवाला है।
इस अवसर पर उस पर कुछ कहना उचित नहीं समझते।
इशारा नहीं सहारा जरूर हिंदी ब्लोग के जरिए होगा...
കൊള്ളാം മക്കളേ, കഴിഞ്ഞ വര് ഷം നിരന്തരമൂല്യ നിര്ണയത്തിനായി പുസ്തകം അച്ചടിച്ച് പുഴുങ്ങാന് വെച്ചു. ഇക്കൊല്ലം എന്താണാവോ ഉദ്ദേശിക്കുന്നത്?
ReplyDeleteഅഞ്ചാം ക്ലാസ്സു മുത്ല് പത്താം ക്ലാസ്സു വരെയുള്ള Text book, hand book, source book എന്നിവ pdf ലഭ്യമാണോ?