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Saturday 16 December 2017

IX Hin II Term Exam Dec 2017 Qn Ans


IX Hin II Term Exam Dec 2017 – Qn Ans.

1. वह सीधा पोस्ट ऑफ़िस गया - इस वाक्य में वह सर्वनाम है। 1
2. बड़े बाबू - पोस्टमैनः वार्तालाप 4
पोस्टमैनः साहब मेरी लाइन बदल दीजिए, सिटी में कहीं भी बदली कर दीजिए।
बड़े बाबूः क्यों?
पोस्टमैनः कुछ नहीं जी, मेरी लाइन बदल दिजिए।
बड़े बाबूः बताइए कि क्या बात है। हम उसपर विचार करेंगे।
पोस्टमैनः उस लाइन में एक लड़की है जिसका एक पैर नहीं है।

बड़े बाबूः ईश्वर ने उसे एक पैर ही दिया है। उससे आप क्यों परेशान होते हैं?
पोस्टमैनः उसने मेरे नंगे पैच देखकर एक जोड़ी जूते बना दिए हैं।
बड़े बाबूः बेचारी लड़की आपको कड़ी धूप में भी नंगे पैर देखकर चलते देखकर दुखी हुई होगी।
पोस्टमैनः सही बात है जी। उस दयालू लड़की को मैं एक पैर दे सकूँ तो बड़ी खुशी होगी। लेकिन मैं असमर्थ हूँ। मुझे उसका सामना करना मुश्किल है। कृपया आप मेरी लाइन बदल दीजिए।
बड़े बाबूः उसके लिए लाइन बदलना अनिवार्य है क्या? यदि है तो हम देख लेंगे।
पोस्टमैनः धन्यवाद जी।
3. कवि ने सपने को 'नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी' कहा है। 1
4. कवि का कहना है कि हमारी जिंदगी में सारे सपने साकार नहीं होते, लेकिन उसके लिए निराश होने की ज़रूरत नहीं है। कोई भी व्यक्ति ऐसा विचार नहीं रख सकते कि हमारी सारी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। हमें जिंदगी की समस्याओं का सामना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। जो बीत गई सो बात गई, हमें कल के लिए तैयार होना चाहिए।2
5. छिप-छिप अश्रु बहानेवालो हिंदी के मशहूर कवि श्री गोपालदास नीरज की एक अच्छी कविता है। कवि इस कविता के द्वारा पाठकों को छोटी-छोटी बातों पर निराश न होकर भविष्य में सक्रियता से काम करने का उपदेश देते हैं।
कवि कहना चाहते हैं कि हमारी ज़िंदगी में हमें कई प्रकार की आशाओं और निराशाओं का सामना करना पड़ते हैं। इस नश्वर जगत में कोई भी व्यक्ति ऐसी उम्मीद नहीं रख सकते हैं कि हमारे सारे सपने साकार हो जाएँगे। लेकिन हमें सपने साकार करने के लिए मेहनत करनी चाहिए। आशाओं की पूर्ति न होने पर उसके बारे में ही सोचकर दिन बिताना अच्छी बात नहीं है। हमारे पास जो सुविधाएँ हैं उन सुविधाओं में हमें संतृप्त होना चाहिए, दूसरों की सुविधाओं और संपत्ति को देखकर दुखी होना नहीं चाहिए। असफलताओं पर रोते रहना, सपना साकार होने के लिए मेहनत नहीं करना ये दोनों अच्छी बातें नहीं हैं। कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है। याने आगे भी बारिश आएगी, पानी का बहाव होगा।
समाज में ऐसे भी कई लोग हैं जो अपनी इच्छाओं की पूर्ति न होने से, सपने साकार न होने से बहुत दुखी हो जाते हैं। ऐसे ही इन आशाभंग पर रोते रहना निराश होकर दिन बिताना आदि लाभकारी नहीं हैं। कवि यह याद दिलाना चाहते हैं कि लोगों को भविष्य के लिए सक्रिय होकर रहना चाहिए। जिंदगी में सदा सुख पाना संभव नहीं है। हमें दुख का भी सामना करना पड़ता है। निराशा में जीवन बितानेवाले याने छिप-छिप अश्रु बहानेवालों को सक्रिय बनने का उपदेश देनेवाली यह कविता बिलकुल अच्छी और प्रासंगिक है।
6. उसे शब्द में निहित सर्वनाम वह है। 1
7. कवि के अनुसार आदमी जहाँ रहता है उसे देश कहता है 1
8. आदमी को जीने की कला नहीं आती - पोस्टर 4
सरकारी हायर सेकंडरी स्कूल, कडन्नप्पल्लि
समता हिंदी मंच
2-1-2017 मंगलवार
प्रातः 10 बजे, स्कूल सभागृह में
संवाद
विषयः आदमी को जीने की कला नहीं आती
संचालकः डॉ. अखिलेष
विभिन्न क्षेत्रों से कई विद्वान इसमें भाग लेते हैं
सबका स्वागत है
सचिव प्रधानाध्यापक

9. औरत धोती धो रही थी - आदमी धोती धो रहा था 1
10. गरीब औरत की हालत – गाँधीजी की डायरी 4
तारीखः................
आज मैं मदुरै में भाषण देने जाते समय एक करुणामय दृश्य देखा। एक औरत तालाब में अपनी धोती धो रही थी। आधी पहनती थी और बाकी आधी धोती थी। फिर धुली हुई को पहन लेती थी और शेष को धोती थी। उसकी हालत देखकर मैं भीतर तक हिल गया। हे भगवान! ऐसे भी गरीब लोग इस देश में रहते हैं। लेकिन कितने लोग आज भी फिज़ूलखर्ची और दिखावा करते हैं। मैंने आज एक संकल्प लिया- मैं आगे एक धोती ही पहनकर चलूँगा। आज का दृश्य मैं कभी नहीं भूलूँगा।
10. टिप्पणी 4
गाँधीजी के अनुसार जब हमारे देश के अधिकाँश लोग गरीब होते हैं हमें फ़िज़ूलखर्ची और दिखावा नहीं करना चाहिए। यदि हम सचमुच अपने देश और देशवासियों से प्यार करते हैं तो हमें कम से कम में काम चलाना चाहिए। गाँधीजी कम बोलने और ज़्यादा करनेवाले थे। जो बातें वे बोलते थे उन बातों को अपनी ज़िंदगी में उतारने में वे तत्पर रहते थे। उनके हर बात में कुछ--कुछ आदर्श हम देख सकते हैं। गाँधीजी पेंसिल से लिखते थे। उसके पीछे भी इस प्रकार की कुछ बातें छिपी हुई हैं।
11. पक्षी के संबंध में सही प्रस्तावः क) पक्षी अपनी गलतियों पर सफाई खोजनेवाला है। 1
12. वाक्य पिरमिड 2
उड़ना असंभव बन गया
आसमान में उड़ना असंभव बन गया
नीले आसमान में उड़ना असंभव बन गया
पक्षी के लिए नीले आसमान में उड़ना असंभव बन गया।
नौजवान पक्षी के लिए नीले आसमान में उड़ना असंभव बन गया।
(अधिकाधिक लंबा बनाने का प्रयास किया है)
13. नौजवान पक्षी के विचार पर अपनी राय 3
नौजवान पक्षी ऊँचाइयाँ उड़कर छोटे-छोटे कीट-पतंगों को खाने से अधिक गाड़ीवाले से दीमकें खरीदकर खाना चाहता था। लेकिन दीमकें उसका स्वाभाविक भोजन नहीं है। उसके पिता और मित्रों के उपदेशों को अस्वीकार करते हुए वह गाड़ीवाले से दीमकें लेकर खाता है। लेकिन इसके लिए वह अपने पंख देते हैं। रोज़ अपने पंख देने से उसका अस्तित्व भी नष्ट हो रहा था। पंख के बिना एक पक्षी कैसे जी सकता है! ऊँचाइयों पर उड़ना पक्षी की स्वाभाविक बात है। लेकिन अपने पंख नष्ट करते हुए अस्वाभाविक भोजन दीमक खाना बहुत खतरनाक बात है।
14. शीर्षकः प्रदूषण 1
15. आजकल नदियाँ कूडेदान बन गई हैं। 2
16. पर्यावरण संरक्षण – लेख 4
पर्यावरण हमारा रक्षा कवच है। इसलिए उसे सुरक्षित रखना हमारे आज और कल के लिए नितांत आवश्यक है। विकास के नाम मनुष्य की ओर से प्रकृति के विरुद्ध कार्य चलते हैं। खेती करने, घर बनाने, कारखाने बनाने, रेल-सड़क आदि बिछाने जैसे विभिन्न कारणों से जंगलों का नाश होता जा रहा है। कारखानों से और गाड़ियों से विषैला धुआँ निकलकर वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। दिल्ली महानगर में प्राणवायु के लिए भी लोग तरसने लगे हैं। जलस्रोत प्रदूषित होते हैं। हमें अपने लिए और आगामी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। उसके लिए प्रदूषण को रोकने के लिए हमें विभिन्न प्रकार के कदम उठाने चाहिए।
16. कविता का आशयः 4
यह कविताँश प्रदूषण की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करनेवाला है। प्रदूषण वर्तमान समाज में एक भयंकर समस्या है।
कवि इसके द्वारा कहते हैं कि जल पीनेलायक न रहा है। याने मनुष्य की असावधानी और नकारात्मक कार्यों से सारे जलस्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं। नदियाँ कूड़ेदान बन गई हैं। हमें सुहानी लगनेवाली पुरवाइयाँ अब कलुषित हो गई हैं। यहाँ कवि वायु प्रदूषण की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। मनुष्य को छोड़कर कोई भी जीव प्रकृति पर नकारात्मक हस्तक्षेप नहीं करता। जल, वायु, ज़मीन- सब कलुषित हो गए हैं। इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषित होने से धरती पर नई-नई बीमारियाँ हो रही हैं जिनकी कोई दवा नहीं। यह एक भयंकर समस्या है।
वर्तमान समाज में प्रदूषण एक भयंकर समस्या है। पर्यावरण को प्रदूषित बनाकर हम जी नहीं सकते। इस प्रकार हम अपने ही अस्तित्व पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। प्रदूषण की समस्या पर पाठकों का ध्यान आकर्षित करनेवाला यह कविताँश बिलकुल अच्छा और प्रासंगिक है।
17. इन पंक्तियों के द्वारा कवि केदारानाथ सिंह जल की कमी की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। यहाँ सारसों के माध्यम से कवि जल की कमी की समस्या प्रस्तुत करते हैं। जल खोजते हुए दूर से आए इन पक्षियों को आगे भी जल की खोज में दूर देसावर तक जाना है। मनुष्य के नकारात्मक हस्तक्षेप से प्राकृतिक जलस्रोतों का नाश हुआ है। शहरीकरण के साथ प्राकृतिक संसाधनों का नाश भी होता है।
18. मनुष्य को छोड़कर कोई भी अन्य जीव प्रकृति का नाश नहीं करता। मनुष्य अपनी सुख-सुविधाएँ बढ़ाने के लिए जो कार्य करते हैं उससे प्रकृति बुरी तरह प्रभावित होती है। प्राकृतिक जलस्रोतों को मिटाकर शहरीकरण पर वह ध्यान देता है। प्रकृति की स्वाभाविकता नष्ट करते हुए नकली विकास कार्यों में वह लग जाता है। इससे प्रकृति में रहनेवाले अन्य जीव-जंतुओं को पानी मिलने में बड़ी दिक्कत होती है। पेड़ों को काटकर, जंगलों का नाश करके, नदियों से रेत निकालकर, खेतों को मिटाकर, प्लास्टिक का अनियंत्रित उपयोग करके मनुष्य प्रकृति में जल की कमी के लिए कारण बनता है। इसी तरह आगे भी करते रहे तो इस धरती में रहना भी असंभव हो जाएगा।
18. अकाल में सारस – नाम की सार्थकता 4
हिंदी के मशहूर कवि केदारनाथ सिंह की एक प्रसिद्ध कविता है 'अकाल में सारस'। इस कविता के द्वारा कवि पाठकों को जल की समस्या के प्रति जागृत होने का उपदेश देते हैं।
कुछ सारस पक्षियों के माध्यम से कवि जल की कमी की भीषणता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। ये पक्षी दूर से आ रहे हैं लेकिन उन्हें जलस्रोत कहीं नहीं दिखाई पड़ता। जिस प्रकार मनुष्य जलस्रोतों का नाश करके दूर से जल बोतलों में या टंकियों में लाकर पीते हैं उसी प्रकार अन्य पशु-पक्षी नहीं करते। मनुष्य के विकास कार्यों के नाम जो नाश जलस्रोतों का होता है उसका सामना अब सभी लोग करते हैं। नगरों और शहरों को बनाते समय मनुष्य प्रकृति की स्वाभाविकता नष्ट करता है। कविता में जो बुढ़िया है वह पुरानी पीढ़ी की प्रतिनिधि है। वह कटोरे में सारसों के लिए पानी रखती है। लेकिन सारस प्राकृतिक स्रोतों से पानी पीनेवाले पक्षी हैं। शहर छोड़कर जाते समय सारस पीछे मुड़कर देखते हैं। उस नज़र में प्रकृति पर नकारात्मक हस्तक्षेप के प्रति वे उनका आक्रोश छिपा हुआ है।
कवि केदानराथ सिंह ने कुछ सारसों के माध्यम से प्रकृति में जल की कमी की भीषणता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। कविता में पात्रों के रूप में सारस और बुढ़िया मात्र प्रत्यक्ष हैं। सारसों का क्रेंकार, उनकी परिक्रमा और पानी के लिए दूर देसावर की ओर जाना आदि पाठकों के मन में समस्या का अवबोध पैदा करता है। 'अकाल में सारस' शीर्षक बिल्कुल उचित है।

रवि, सरकारी हायर सेकंडरी स्कूल, कडन्नप्पल्लि।

1 comment:

  1. रवी जी, बड़े ही सराहनीय प्रयास।

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